अतीत कि कुछ झलकियाँ
अतीत कि कुछ झलकियाँ जिन्हें देख आज भी अनेकों भाव मन मस्तिष्क में उमङ जाते है ।।
चितौङ इसका त्याग, बलिदान, इतिहास, बहादुरी, जौहर - शाके, हठ, निति, राजनीति और न जाने क्या क्या !!
सिसोदियों कि रट और राठौङी हठ ।।
बप्पा रावल, राणा कुम्भा, सांगा ही नही उङने राजकुमार पृथ्वीराज सिंह भी इसी माटि के सपूत थे ।।
प्रवेश कर कुछ आगे जाते है तो हम मेङतियाँ राठौड़ भी गर्व से सिर उँचा कर चलने लगते है और आँखें इधर उधर जयमल मेङतियाँ कही खड़े नजर आये देखने का प्रयास करती है ।
पर फता जी कि याद आते ही बात समझ आती है बलवीर वह अमर बलिदान हर कौने मे है,
क्यों आँखें चारों और दौड़ा रहे हो, तभी तो चितौङ कहता है अभी मेरी कहानी लम्बी है ।।
जब कई दरवाजों से प्रवेश करते है तो पता चलता है यहाँ कदम कदम पर आत्म- सम्मान और स्वाभिमान का मोल चुकाया गया था प्राणों कि आहुति से ।।
राणा कुम्भा का महल और कलाकृतियों को देख मेवाड़ कि ख्याति का आनन्द लेते हुवे जब आगे बढ़ते है तो म्यूजियम में रखा "कल" अपने गौरवपूर्ण इतिहास से अवगत करवाता है ।।
में अब बिच खड़ा हो एक तरफ कीर्ति-स्तम्भ देखने लगा उँचाई पुरी आँखों से नाप पाता उससे पहले नजर पद्मिनी महल कि और गयी ।
राणा रतनसिं, गौरा-बादल, तुर्क सेना खिलजी का मुँह धुल मे और कवीयों कि वाणी बादल बारह वर्ष रो लङीयो लाखा बिच ।।
अब क्या निर्णय करुं कीर्ति बङी या बलिदान ??
एक तरफ कुम्भा जैसा अजय शासक और दुसरी तरफ बलिदान कि लम्बी कतार !!
किधर जाऊ कोई निर्णय हो पाता उससे पहले ही....
साहब घोड़े कि सवारी करोगे ???
नहीहीही ।।।
दृश्य बदल जाते है,
कहानी अधुरी रह गयी ।।
लेखन - बलवीर राठौड़ डढेल ।।
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