राजा मानसिंह आमेर - काबुल के शासक नियुक्त ।
जब राजा भगवंतदास पंजाब के सूबेदार नियत हुए, तब सिंध के पार सीमांत प्रान्त का शासन कुँवर मानसिंह को दिया गया । जब 30वें वर्ष में अकबर के सौतेले भाई मिरज़ा मुहम्मद हक़ीम की (जो कि काबुल का शासनकर्ता था) मृत्यु हो गई, तब इन्होंने फुर्ती से काबुल पहुँचकर वहाँ के निवासियों को शान्ति दी और उसके पुत्र मिरज़ा अफ़रासियाब और मिरज़ा कँकुवाद को राज्य के बुरे–भले अन्य सरदारों के साथ लेकर वे दरबार आए।
अकबर ने सिंध नदी तक ठहर कर कुँवर मानसिंह को काबुल का शासनकर्ता नियत किया । इन्होंने बड़ी बहादुरी के साथ रूशानी जातिवालों को लुटेरेपन और विद्रोह से खैवर के रास्ते रोके हुए थे, पूरा दण्ड दिया ।
ज्ञात रहे यही जातियाँ थी जिन्होंने भारत पर आक्रमणकारीयों को हथियार उपलब्ध करवाये थे ।
जब राजा बीरबल स्वाद प्रान्त में यूसुफ़जई के युद्ध में मारे गए और जैनख़ाँ कोका और हक़ीम अबुल फ़तह दरबार बुला लिए गए, तब यह कार्य मानसिंह को सौंपा गया।
जब जाबुलिस्तान के शासन पर भगवंतदास नियुक्त हुए और सिंध पार होने पर पागल हो गए, तब उस पद पर कुँअर मानसिंह नियत हुए ।
मानसिंह आमेर काबुल के शासक नियुक्त होने के बाद सनातन धर्म को नष्ट करने के लिये इस्लाम कि जो आंधी काबुल से आती थी उसे सदैव के लिये खत्म करने के लग गये और अन्ततः उन्होंने सभी पाँच मुस्लिम राज्यों को संपूर्ण नष्ट कर उनके हथियार बनाने के कारखानों को पूर्णतः नष्ट कर दिया ।।
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