रावल बाप्पा गुहिलोत, मेवाड़ (734-753 ई.)
मेवाड़ के राजा नरवाहन के 971 ई. के शिलालेख में वपक को गुहिल वंश के राजाओं में चन्द्र के समान और पृथ्वी का रत्न कहा गया है।
वह एक स्वतंत्र और प्रतापी राजा था तथा अपने गुरु हरित ऋषि की बहुत सेवा करता था। बप्पा की सोने की एक मुद्रा प्राप्त हुई है जिस पर शिवलिंग और त्रिशूल अंकित है ।
725-738 ई. के मध्य अरब के मुसलमानों ने सिंध की ओर से राजस्थान पर दूर तक आक्रमण किए उस समय चित्तौड़ पर मौर्य-वंश का शासन था और गुहिलवंश का बप्पा रावल वर्तमान एकलिंग जी के पास नागदा में शासन करता था । ये दोनों वंश प्रतिहारों के सामंत थे ।
मुसलमानों के आक्रमणों से चित्तौड़ निर्बल हो गया और मसुलमानों ने उस पर अधिकार कर लिया । इस पर बप्पा रावल ने 734 ई. में उन्हें चित्तौड़ से खदेड़ कर वहां अपना राज्य स्थापित किया ।
कर्नल जैम्स टॉड ने भी लिखा है कि मल्लेछों की निकाल कर बप्पा रावल ने चित्तौड़ जीता । बप्पा का बल प्रताप इतना बढ़ा कि भावी संतान उसे वंश का संस्थापक मानने लगी जबकि गुहिल वंश का मूल पुरुष गुहादित्य 200 वर्ष पूर्व 566 ई. में हुआ था ।
(उदयपुर राज्य का इतिहास प्रथम-गौ.ही. औझा)
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