Monday, 20 March 2017

महाराज शिवि

महाराज शिवि


राजा शिवि एक दिन अपने दरबार में बैठे हुए थे। उसी समय एक कबतूर उनकी गोद में आकर गिरा। कबूतर बहुत ही डरा हुआ था। कबूतर राजा के कपडों में छिपने लगा, राजा कबूतर को अपने हाथों में पकड कर उसे पुचकारने लगा। इतने में ही एक बाज उडता हुआ वहाँ आया और राजा के सामने बैठ गया। बाज ने राजा से मनुष्य की बोली में कहा- राजन आप मुझे मेरा भोजन दे दीजिये। मुझे भूख लग रही है यह कबूतर मेरा भोजन है। राजा शिवि ने बाज से कहा- कि तुम कोई साधारण पक्षी नहीं लगते हो तुम्हें भूख लग रही है तो मैं तुम्हारी भूख मिटाऊँगा पर इस कबूतर को मैं तुम्हें नहीं दे सकता यह कबूतर मेरी शरण में आया हुआ है। शरण में आये हुए की रक्षा करना मेरा धर्म है। बाज ने राजा से कबूतर को देने हेतु खूब अनुनय विनय की परन्तु राजा ने शरण में आये हुए कबूतर को देने से इन्कार कर दिया और कहा कि तुम्हारी भूख मिटाने हेतु मैं और प्रबन्ध कर दूँगा।


इस पर बाज ने कहा मुझे भूख मिटाने हेतु ताजा मांस चाहिए मैं तो ताजा मांस खाने वाला पक्षी हूँ । राजा ने फिर विचार कर यह निर्णय किया कि किसी दूसरे प्राणी को मारने के बजाय क्यों न मैं अपना मांस इस बाज को दे दूं और बाज से कहने लगे कि मैं अपना ताजा मांस ही तुम्हें खाने को दूंगा तुम उससे अपनी भूख मिटाना।

बाज ने राजा से कहा कि राजा आप एक छोटे से पक्षी के लिए अपने शरीर का मांस क्यों दे रहे हैं। राजा बोले किसी प्राणी का जीवन बचाने हेतु यदि शरीर का उपयोग हो जावे तो उससे उत्तम कार्य और क्या होगा। इसके पश्चात् राजा ने वहाँ तराजू मंगवाया । तराजू के एक पलड़े में राजा ने कबूतर को बैठाया और दूसरे पलड़े में राजा ने अपने हाथ से अपने बांये हाथ को काटकर रख दिया परन्तु इससे तो कबूतर का पलडा उठा भी नहीं।

तत्पश्चात् राजा ने अपना पैर काटकर रखा फिर भी कबूतर का पलडा भारी ही रहा तो राजा स्वयंम् फिर पलड़े में बैठ गये और बाज से बोले कि अब तुम मेरे शरीर को खाकर अपनी भूख मिटाओ। राजा के बैठते ही कबूतर वाला पलडा ऊपर उठ गया और वहाँ उपस्थित लोगों ने देखा कि जो बाज था वह साक्षात् इन्द्र के रूप में प्रकट हो गया। इन्द्र शिवि से बोले कि हमनें यह सब आपकी परीक्षा लेने हेतु किया था। आपका यश सदैव अमर रहेगा।

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