दिल्लीपति राजा कुमार देव तोमर
हांसी दुर्ग (21 दिसम्बर 1037 ई.)
मसूद गजनवी का आक्रमण
मसूद के इस आक्रमण का सामना दिल्लीपति कुमारपाल देव तोमर (1021-1051 ई.) की सेना ने किया।
मुस्लिम इतिहासकार बैहाकी लिखता है कि राजपूतों ने प्राणप्रण से युद्ध किया और अपनी कोशीश में कोई कमजोरी नहीं आने दी। यह दुर्ग उनकी वीरता के अनुरूप ही था ।
अंत में पांच जगह सुरंग लगा कर दीवारें गिरा दी गई और इसके बाद युद्ध हुआ जिसे जीत कर मुसलमानों ने दुर्ग पर अधिकार जमाया । हिन्दुओं की स्त्रियों और बच्चों को गुलाम बना लिया गया ।
विजय अभियान (1043 ई.) -
गजनी सुल्तान मैदूद को मार भगाने वाले कुमारपाल ने दूसरे राजाओं से मिल कर हांसी और आस-पास क्षेत्र से मुसलमानों को मार भगाया ।
नगर कोट कांगड़ा का घेरा -
अब ये भारत के वीरें ने कांगड़ा दुर्ग को मुसलमानों से मुक्त कराने हेतु चार महीने का घेरा डाला और अन्त में राजपूत इस युद्ध में सफल हुए और उन्होंने दुर्ग में पुन: मंदिरों की स्थापना की ।
लाहौर का घेरा -
कुमारपाल तोमर की सेना ने लाहौर को सात महीने घेरा। इतिहासकार गांगुली का अनुमान है कि इस अभियान में राजा भोज परमार, राजा कर्ण कलचुरी और राजा अनिहल चौहान ने सहायता दी थी। इतिहासकार अशोक कुमार मजूमदार के अनुसार सांभर के राजा दुर्लभराज चौहान तृतीय ने भी इसमें सहायता की थी ।
नगर कोट कांगड़ा का घेरा द्वितीय (1051 ई.)
गजनी के सुल्तान अब्दुर्रशीद ने पंजाब के सूबेदार हाजिब को नगरकोट जीतने का आदेश दिया। मुसलमानों ने दुर्ग का घेरा डाला और युद्ध शुरू हुआ। छठे दिन दुर्ग की दीवार टूटी और विकट युद्ध हुआ जिसमें इतिहासकार हरिहर निवास द्विवेदी के अनुसार राजा कुमारपाल देव तोमर युद्ध कर काम आया ।
अब रावी नदी गजनी और भारत के मध्य की सीमा बन गई ।
(सल्तनत काल में हिन्दू प्रतिरोध - डॉ. अशोक कुमार सिंह, बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी की पीएच.डी. हेतु स्वीकृत शोध ग्रंथ, पृष्ठ 68–70)
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