Sunday, 29 April 2018

ब्रिगेडियर जबरसिंह जी का देहावसान और उनकी धर्मपत्नी उनके साथ चिता में बैठकर सती होना

मेरी जीवन-कथा (ठा. औकार सिंह बाबरा)


मैं तिजारा से जयपुर आया उसके दो दिन बाद ही समाचार मिला कि जोधपुर में ब्रिगेडियर जबरसिंह जी का देहावसान हो गया और उनकी धर्मपत्नी उनके साथ चिता में बैठकर सती हो गई । जोधपुर नगर में सती होने का समाचार प्रसारित होते ही हजारों आदमी सती के दर्शनार्थ घटनास्थल पर पहुँच गये ।
ब्रिगेडियर साहब का दाह संस्कार हवाई अड्डा मार्ग पर सर प्रताप के थङे के पास किया गया । ज्ञातव्य है कि ब्रिगेडियर साहब जबरसिंह सर प्रतापसिंह के दोहिते थे । दाह संस्कार के समय इतनी भीङ इकट्ठी हो गई कि पुलिस स्थिति को नियंत्रण करने में पूर्णतः असफल रही ।
बाद में पुलिस की आलोचना हुई तो कई लोगों के विरुद्ध आपराधिक मामला दर्जे हुआ, उनमें से एक राजा हरीसिंह कुचामण भी थे । उनकी रानी साहिबा जबरसिंह जी की बहन थी, इस रिस्तेदारी के कारण जबरसिंह जी के दाह संस्कार के समय उनका उपस्थित होना स्वाभाविक था । न्यायालय ने अधिकांश आरोपियों को जमानत दे दी क्योंकि वे प्रतिष्ठित व्यक्ति थे और उनके भाग जाने की कोई संभावना नहीं थी ।
मेरे पास राजा साहब कुचामण का संदेश आया कि इस बात का पता लगाओ कि राज्य सरकार का इस मामले में क्या रुख है । विधायकों के माध्यम से पता चला कि मुख्यमंत्री व्यासजी इस प्रकरण को अधिक महत्व नहीं दे रहें हैं, और इसका कारण यह बताया गया कि व्यासजी की जाति के जाने-माने व्यक्ति और नगर के कई प्रतिष्ठित लोग भी सती स्थल पर उपस्थित थे ।

(पाठकों को प्रसंगवश बता दूँ कि आगे चलकर सन् 1987 में सिकर जिले के दिवराला गाँव में राजपूत महिला रुपकँवर सती हूवे थे, जिनके महिमामण्डन के आरोप में मुझे भी गिरफ्तार किया गया था और मुझे 31 दिन तक जेल में रहना पङा ।
मैंने हाईकोर्ट में याचिका दायर की जिसका मुकदमा 21 दिन लगातार चला । यह एक तरह का कीर्तिमान था । हाईकोर्ट की दो जजों की खण्डपीठ ने सुनवाई की थी, जिसके एक सदस्य जस्टिस गुमानमल लोढा थे, यह पहले जोधपुर में वकालत करते थे, और ब्रिगेडियर जबरसिंह जी की पत्नी के सती होने के समय घटना स्थल पर पूरे समय उपस्थित थे ।)

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