Sunday, 13 May 2018

एक राजपूत न्यायाधीश ने हत्या के ऐसे आरोपी को न्याय दिया जिसका कोई वकील भी नहीं था ।

मेरी जीवन कथा - ओंकार सिंह बाबरा -

एक राजपूत न्यायाधीश ने हत्या के ऐसे आरोपी को न्याय दिया जिसका कोई वकील भी नहीं था 





तिजारा में मेरे अधिकार-क्षेत्र में कोटकासिम का इलाका भी था। स्वतंत्रता से पहले कोटकासिम जयपुर राज्य की एक निजामत थी। जयपुर राज्य द्वारा सन् 1857 के सैनिक विद्रोह के समय ब्रिटिश सरकार को सहायता देने के एवज में ब्रिटिश सरकार ने जयपुर राज्य को यह क्षेत्र प्रदान किया था। उसी क्षेत्र में अब प्रसिद्ध उद्योग नगरी भिवाड़ी स्थित है। तिजारा की एक दो घटनाओं का जिक्र करना समीचीन होगा।

मेरे न्यायालय में हत्या का एक प्रकरण प्रस्तुत हुआ, पुलिस ने एक रायसिख लड़के को इस आरोप के साथ पेश किया कि उसने एक रात अपने पिता को सोते हुए कुल्हाड़ी से वार करके मार दिया। लड़का भोला सा दिख  रहा था और वह हाथ जोड़े खड़ा था, परन्तु बार-बार अपनी आँखों से आँसू पोछता था। लोक अभियोजक ने दलीलें पेश करते हुए कहा लड़का भारतीय दण्ड संहिता की धारा 302 का दोषी है और उसे मृत्युदण्ड की सजा दी जानी चाहिए और प्रकरण जिला सेशन जज की अदालत में जाना चाहिए। पुलिस की ओर से अगली पेशी पर गवाह पेश होने थे। लड़के का कोई वकील नहीं था और न कोई गवाह, लड़के को किशनगढबास जेल में भेज दिया गया। अगली पेशी से पहले ही मुझे किशनगढबास जेल के मासिक निरीक्षण हेतु जाना पड़ा, वहाँ जेल का निरीक्षण करने के पश्चात् जेलर से उसके कार्यालय में बैठकर बातचीत हुई, जेलर ने अपनी कई समस्याएँ बताई।

विभिन्न कैदियों के विषय में चर्चा करते हुए मैंने उस रायसिख लड़के के विषय में पूछा तो जेलर ने कहा कि लड़का निर्दोष है, वास्तविकता यह है कि उसके पिता ने दो शादियाँ की थी। लड़का पहली पत्नी से पैदा हुआ था, दूसरी पत्नी आयी, जिसका चाल चल ठीक नहीं था उसका एक अन्य प्रेमी उससे विवाह करना चाहता था। उसी ने लड़के के बाप को मारा था और लड़के की माँ ने आरोप लगा दिया कि लड़का खेत में ठीक प्रकार से काम नहीं करता था अत: उसका बाप बार-बार उसे डांटता और पीटता था, इससे नाराज होकर लड़के ने बाप की हत्या कर दी। पुलिस लड़के की नई माँ के बयानों के आधार पर कार्रवाई कर रही थी। लड़के की माँ का प्रेमी धनाढ्य था और उसने पुलिस को रिश्वत देकर लड़के को गिरफ्तार करवाया था।

इस रोमांचक सूचना के पश्चात् मैंने अगली पेशी पर पुलिस के गवाहों से कई प्रश्न पूछे। ऐसे प्रश्न जो लड़के का कोई वकील पूछ सकता था। इन प्रश्नों के उत्तर पुलिस के गवाह ठीक प्रकार से नहीं दे पाये। अन्त में मैंने निर्णय दिया कि लड़का निर्दोष है और पुलिस ने वास्तविक अपराधी को गिरफ्तार नहीं किया था अतः पुलिस का आचरण अत्यन्त संदेहास्पद है। | पुलिस ने सेशन कोर्ट में मेरे निर्णय के विरुद्ध अपील की परन्तु सेशन जज ने अपील खारिज कर दी और जिले के पुलिस अधीक्षक को आदेश दिया कि संबंधित पुलिस अधिकारियों के आचरण की जाँच करके उनके विरुद्ध उचित कार्यवाही की जाय, बाद में जब मैं अलवर में अपना वेतन लेने गया तो सेशन जज श्री लेहरसिंह मेहता से मिला। वे मूलतः मेवाड़ के निवासी थे और अच्छे कानूनविद गिने जाते थे। उन्होंने रायसिख लड़के के प्रकरण के विषय में मेरी प्रशंसा की और कहा कि आप इसी प्रकार प्रकरणों की छानबीन करते हुए फैसले दिया करो। उनसे बातचीत करके मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई।

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